वक़्त के साथ हर चीज़ में बदलाव आता है कुछ ऐसा ही बदलाव अब दिल्ली में भी देखने को मिलेगा। दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर विवाद में Supreme Court ने अपना फैसला सुना दिया है। Supreme Court की संवैधानिक बेंच ने साफ कर दिया है कि भूमि, लॉ ऐंड आर्डर और पब्लिक ऑर्डर को छोड़ अन्य सभी मामलों में प्रशासनिक अधिकारियों पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण होगा। फैसले को पढ़ते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह सर्वसम्मति से लिया गया निर्णय है।
देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि निर्वाचित सरकार का प्रशासन पर नियंत्रण ज़रूरी है। सीजेआई ने कहा कि बेंच जस्टिस अशोक भूषण के 2019 के फैसले से सहमति नहीं है कि दिल्ली के पास सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं है। Supreme Court ने कहा कि दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्ति पब्लिक ऑर्डर, भूमि और पुलिस के तीन विषयों तक विस्तारित नहीं होगी, जिन पर केवल केंद्र के पास विशेष कानून बनाने की शक्ति है। हालांकि, आईएएस और दिल्ली में तैनात जॉइंट कैडर के अधिकारियों पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण होगा। एलजी उन सभी मामलों के संबंध में दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह पर काम करने के लिए बाध्य होंगे जिन पर दिल्ली सरकार को कानून बनाने का अधिकारा है। उपराज्यपाल सेवा के मामलों में दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह से बंधे रहेंगे।
2014 में आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने के बाद दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर विवाद होने लगा। मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। 14 फरवरी 2019 को दो जजों की बेंच ने फैसला सुनाया तो दोनों की राय अलग-अलग थी। एक ने सेवाओं पर दिल्ली सरकार के नियंत्रण को सही बताया तो दूसरे जज का मानना था कि यह अधिकार दिल्ली सरकार का है। इसके बाद मुद्दे को तीन जजों की पीठ के पास भेजा गया। बाद में केंद्र सरकार की अपील के बाद मुद्दे को मई 2021 में संवैधानिक पीठ के पास भेजा गया।
चीफ जस्टिस ने कहा कि राज्यों के पास भी शक्ति है लेकिन राज्य की कार्यकारी शक्ति संघ के मौजूदा कानून के अधीन है। यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्यों का शासन संघ द्वारा अपने हाथ में न ले लिया जाए। सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि यदि प्रशासनिक सेवाओं को विधायी और कार्यकारी डोमेन से बाहर रखा जाता है, तो मंत्रियों को उन सिविल सेवकों को नियंत्रित करने से बाहर रखा जाएगा जिन्हें कार्यकारी निर्णयों को लागू करना है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने यह फैसला सुनाया है। बेंच के सदस्यों में जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं। बेंच ने केंद्र और दिल्ली सरकार की ओर से क्रमश: सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की 5 दिन दलीलें सुनने के बाद 18 जनवरी को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।
संविधान पीठ का गठन, दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर केंद्र और दिल्ली सरकार की विधायी और कार्यकारी शक्तियों के दायरे से जुड़े कानूनी मुद्दे की सुनवाई के लिए किया गया था। पिछले साल 6 मई को देश की सबसे बड़ी अदालत ने इस मुद्दे को 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था। Supreme Court के इस फैसले के बाद केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर विराम लग सकता है।
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