पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी कोरोना वायरस से संक्रमित हैं और इस वक्त अस्पताल में भर्ती हैं.

  • पश्चिम बंगाल के बीरभूम हुआ था मुख़र्जी का जन्म
  • प्रणब दा को राजनिति विरासत में मिली
  • इंदिरा गांधी के करीबी थे प्रणब मुखर्जी
  • प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए थे प्रणब मुखर्जी
  • भारत रत्न से सम्मानित है प्रवण मुखर्जी
  • पहली बार इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री
  • 1980 से 1985 राज्य सभा में सदन के नेता

*पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी कोरोना वायरस से संक्रमित हैं और इस वक्त अस्पताल में भर्ती हैं. बीते दिन उनकी ब्रेन सर्जरी हुई है और अब वो वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं. ऐसे में देश के अलग-अलग हिस्सों में उनके लिए दुआओं का हवन और  पूजन का दौर शुरू है..

*प्रणब मुख़र्जी का जन्म 11 दिसम्बर 1935 में पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में हुआ था.उन्होंने शुरुआती पढ़ाई बीरभूम में की और बाद में राजनीति शाष्त्र और इतिहास विषय में एम.ए. किया. उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की डिग्री भी हासिल की. प्रणब मुख़र्जी जी 1966  में पांच बार  राज्यसभा  के लिए चुने गए . बाद में उन्होंने चुनावी राजनीति में भी कदम रखा और 2004 से लगातार दो बार लोक सभा के लिए चुने गए.

उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत साल 1969 में हुई. भारत के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी की मदद से उन्होंने सन 1969 में राजनीति में प्रवेश किया. तब वे कांग्रेस टिकट पर राज्य सभा के लिए चुने गए.1973 में वे केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिए इसके बाद वो 1975,1981,1993,1999 में फिर राज्यसभा के लिए चुने गए. उनकी लिखी आत्मकथा मे  साफ तौर  से कहा गया है ..कि वो इन्दिरा गांधी के बेहद करीब थे.और जब आपत्काल के बाद कांग्रेस की हार हुई तब इन्दिरा गांधी के साथ उनके सबसे विश्वस्त सहयोगी बनकर उभरे थे. वही बाच करे 1980 की तो वे राज्य सभा में कांग्रेस पार्टी के नेता बनाये गए. इस दौरान मुखर्जी को सबसे शक्तिशाली कैबिनेट मंत्री माना जाने लगा और प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में वे ही कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता करते थे.

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री पद का सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा था.लेकिन तब कांग्रेस पार्टी ने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री चुना.1984 में राजीव गांधी सरकार में उन्हें भारत का वित्त मंत्री बनाया गया. बाद में कुछ मतभेदों के वजह से  कारण प्रणब मुखर्जी को वित्त मंत्री का पद छोड़ना पड़ा. वे कांग्रेस से दूर हो गए और एक समय ऐसा आया जब प्रणब मुखर्जी ने एक नई राजनीतिक पार्टी बनाई.उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया. दरअसल वो अपने मत में स्पष्ट थे और अपना विरोध दर्ज़ करवाना जानते थे. इसलिए राजीव गांधी से दूरी बनाई. वीपी सिंह के कांग्रेस छोड़ने के बाद पार्टी की स्थिति डावांडोल हो गई.बाद में कांग्रेस ने प्रणब मुखर्जी पर फिर भरोसा जताया और उन्हें मनाकर फिर पार्टी में लाया गया.

वही फिर 2009 से 2012 तक मनमोहन सरकार में फिर से भारत के वित्त मंत्री रहे. जब कांग्रेस ने उन्हें अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार चुना. तब प्रणब मुख़र्जी ने  वित्त मेंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने वाले वे पश्चिम बंगाल के पहले व्यक्ति बने. राष्ट्रपति चुनाव में उनका सामना लोकसभा के अध्यक्ष रह चुके पी. ए संगमा से हुआ. राष्ट्रपति के तौर पर 5 साल के अपने कार्यकाल के दौरान प्रणब मुखर्जी ने राजनीतिक जुड़ाव से दूर रह कर काम किया.

8 नवंबर 2016 को जब प्रधानमंत्री मोदी ने 1000 और 500 रु के पुराने नोट बंद करने का फैसला लिया. तो विपक्षी दलों ने काफी हो-हल्ला मचाया. इसका असर संसद के कामकाज पर भी दिखा. लगातार शोर-शराबे के वजह से काम में रुकावट पर उन्होंने चिंता जताई और कहा कि विपक्षी दलों को सदन को काम करने देना चाहिए.प्रणब मुखर्जी सिर्फ नाम के राष्ट्रपति नहीं रहे. उन्होंने अपने अधिकारों का उपयोग बखूबी किया और ये भी  साबित किया कि वे गणतंत्र के प्रधान हैं. देश की बदलती स्थितियों पर भी उनकी लगातार नजर रही .प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल में कई बार सरकार को चेताया और कहा कि देश में माहौल खराब हो रहा है और सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए.वही 8 अगस्त 2019 में प्रणब मुख़र्जी को भारत रत्न सम्मान दिया गया था

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