म्यांमार ने जिन उग्रवादियों को भारत को सौंपा है उनकी असम और मणिपुर पुलिस को काफी दिनों से तलाश थी।
उग्रवाद की समस्या पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में एक पहेली है। यहां आजादी के बाद से ही इन राज्यों और उग्रवाद के बीच बहस देखने को मिली है। पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवादी संगठन के खिलाफ भारत सरकार ने कड़ा रुख किया हुआ है। इस बीच भारत सरकार को उग्रवाद को लेकर एक बड़ी सफलता मिली है। उग्रवादी संगठनों पर लगाम लगाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की रणनीति अब रंग लाने लगी है। म्यांमार ने भारत को नार्थ इस्ट के 22 उग्रवादियों को सौंप दिया है।
असम और मणिपुर में वॉन्टेड थे उग्रवादी
म्यांमार ने जिन उग्रवादियों को भारत को सौंपा है उनकी असम और मणिपुर पुलिस को काफी दिनों से तलाश थी। इनमें से 12 मणिपुर के खूंखार उग्रवादी थे और बाकी को असम सरकार ढूंढ रही थी। माना जा रहा है कि म्यांमार की तरफ से इन उग्रवादियों को भारत को सौंपने का फैसला दोनों देशों के संबंधों को मजबूत करेगा। इन सभी को विशेष विमान से भारत लाकर असम और मणिपुर पुलिस को सौंपा गया है। बताया जा रहा है कि म्यांमार पुलिस ने इन सभी को मुठभेड़ के दौरान पकड़ा था। इस कदम के बाद म्यांमार ने यह साबित कर दिया है कि उग्रवाद को खिलाफ जारी लड़ाई में वह भारत के साथ है।
वारदात को अंजाम देकर म्यांमार की सीमा में घुसते हैं उग्रवादी
नागालैंड से सटे मणिपुर में उग्रवाद की समस्या काफी समय से चली आ रही है। राज्य और केंद्र सरकार को इस समस्या से दो चार होना पड़ता है। मणिपुर में सबसे ज्यादा सक्रीय उग्रवादी गिरोह हैं। मणिपुर में उग्रवाद के पनपने की वजह उसका म्यांमार की सीमा से सटे होना है। केंद्र सरकार ने उग्रवाद पर लगाम लगाने के लिए कई कड़े कदम भी उठाये हैं लेकिन इसके बावजूद भी राज्य में उग्रवादियों की तादाद में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। नागलैंड और असम की बात करें तो यहां उग्रवादी संगठनों की संख्या कम है। जिस वजह से यहां उनके साथ शांति प्रक्रिया का सहारा लिया जा सकता है। लेकिन मणिपुर में इसकी संख्या ज्यादा है, इन संगठनों को यहां एक छतरी के नीचे लाना काफी मुश्किल है। एक अनुमान के मुताबिक मणिपुर में उग्रवाद पनपने के बाद से अब तक करीब दस हजार लोग मारे जा चुके हैं।
पूर्वोत्तर राज्यों में आजीविका बना उग्रवाद
प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होने के बाद भी उग्रवाद से प्रभावित इलाकों का विकास नहीं हो रहा है। माना जाता है कि अगर असल और अरुणाचल प्रदेश की नदियों पर पनबिजली परियोजनाएं लगाई जाए तो इससे आधे देश में बिजली की सप्लाई की जा सकती है। लेकिन ये विचार बस फाइलों में ही बनकर रह गए हैं। वहीं इन राज्यों में पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। लेकिन उग्रवादी संगठन विकास ना होने को लेकर सरकार को कोसते हैं और सरकार उग्रवादियों को। जिस वजह से इन इलाकों के युवा उग्रवादी संगठनों में शामिल हो जाते हैं। कहा जाता है कि यहां लोगों के लिए उग्रवाद आजिविका का साधन बन चुका है। स्थानीय नेता भी अब उग्रवाद को लेकर चुनाव में फायदा उठाते हैं।
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भले ही आज देश पूरा तरक्की के नए आयामों को छू रहा है। लेकिन पूर्वोत्तर राज्या आज भी उग्रवाद की मार झेल रहे हैं। पूर्वोत्तर का कोई भी राज्या ऐसा नहीं है जो इस समस्या से अछूता रहा हो। माना जाता है कि इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि आजादी के इतने साल बात भी यहां के लोग खुद को भारत का हिस्सा नहीं मानते हैं। कहा जाता है कि आजादी से पहले इन इलाकों में राजाओं और कबीलों की राज था। इन लोगों को लगता है कि उनका जबरन भारत में विलय किया गया है। यही वजह है कि नागालैंड और मणिपुर जैसे राज्यों में भारत के अन्य राज्यों से जाने वाले लोगों को आज भी हिदुस्तानी कहा जाता है।
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भारत सरकार और उग्रवादियों के बीच काफी लंबे वक्त से जंग छिड़ी हुई है। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सालाहकार अजीत डोभाल इस पर लगाम लगाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। इस काम में म्यांमार भारत की मदद कर रहा है। पिछले साल फरवरी-मार्च में भी भारतीय सुरक्षा ऐजेंसिंयों के इनपुट के आधार पर म्यांमार के सुरक्षाबलों ने उग्रवादी संगठनों के कैंप को तबाह किया था। और अब म्यांमार ने 22 उग्रवादियों को भारत को सौंपा है। जिससे कहीं ना कहीं देश को पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद को काबू करने में मदद जरूर मिलेगी।
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