देश की ऐसी महिला राजनीतिज्ञ जिनके सामने अच्छे अच्छों की ज़ुबान हो जाती है ‘बंद’

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‘पॉलिटिक्स’ में क्या होता है किस तरह से काम किया जाता है और विपक्ष को किस तरह नीचा दिखाना है ये देश की जनता बखूबी जानती है। आज माना जाता है कि महिला किसी चीज़ में भी पुरुष से कम नहीं हैं लेकिन ये भी एक हक़ीक़त है कि देश को आज़ाद कराने से लेकर अब तक महिलाओं का विशेष योगदान रहा है। यही वजह है कि देश की महिलाएं शुरू से ही पॉलिटिक्स का हिस्सा रही हैं। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि कुछ महिलाओं ने तो पुरुषों से भी अच्छा काम किया और कामयाब रहीं। आज भी देश की जनता कुछ महिलाओं को उनके अलग अंदाज़ और खुल के अपनी बात करने के अंदाज़ को खूब पसंद करती है। आज हम आपको कुछ ऐसी ही महिला नेताओं या राजनीतिज्ञ के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी बातें सुनकर ही जनता उनकी मुरीद हो जाती है और उन्हें अपना सरताज बना लेती है।

पुरुषों से किसी हाल में भी कम नही हैं देश की ये महिला राजनीतिज्ञ

1 ममता बनर्जी (तृणमूल कांग्रेस) – ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। वह राज्य के मुख्यमंत्री पद पर कार्य करने वाली पहली महिला हैं। ममता बनर्जी का जन्म कोलकाता (पूर्व में कलकत्ता), पश्चिम बंगाल में, एक निम्न-मध्यम श्रेणी के बंगाली परिवार में हुआ था।

19 मई 2016 को वह लगातार दो बार जीतने वाली एकमात्र महिला मुख्यमंत्री बनीं। बंगाल में वह लोकप्रिय रूप से “दीदी” (बड़ी बहन) के रूप में जाना जाती हैं, उन्होंने पश्चिम बंगाल के वर्ष 2011 के विधानसभा चुनावों में अपने भाषण से जनता को लुभा कर व्यापक जीत के साथ राज्य में इतिहास बनाया, जिसने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की अगुवाई में 34 वर्ष पुरानी वाम मोर्चा सरकार को उखाड़कर फेंक दिया।

जनता में उनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि उन्होंने आठवें मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के अंत में ज़बरदस्त जीत हासिल की। वर्ष 1997 में बनर्जी ने खुद को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग कर लिया और अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की, जिसे टीएमसी या एआईटीएमसी भी कहा जाता है। दीदी का अलग अंदाज़ ही है कि बंगाल की जनता हर बार उनके साथ खड़ी नज़र आती है।

2. प्रियंका गांधी वाड्रा (कांग्रेस) – प्रियंका गांधी वाड्रा एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं। वे नेहरू-गांधी परिवार से हैं, उनकी दादी इंदिरा गांधी और दादी के पिता जवाहरलाल नेहरू भी भारतीय प्रधानमंत्री रहे हैं। प्रियंका गांधी को राजनीति विरासत में मिली बावजूद इसके वो खुद के नाम सी ही पहचानी जातीं हैं। उनका जन्म नई दिल्ली में ही हुआ।

उनकी उनकी रूचि राजनीति में बिल्कुल नहीं थी पर बाद में वो अपने भाई और माँ को सहयोग की मंशा से, अमेठी और रायबरेली में उनके प्रचार अभियानों और आंदोलनों में शामिल हो गई। प्रियंका हमेशा कांग्रेस के साथ खड़ी रही और इसकी सफलता में समय-समय पर पूरा योगदान दिया।

बचपन से ही लोग उनमें उनकी दादी का अक्स देखते थे। यही वजह है कि वो अपने चारों तरफ अपार जनता को आकर्षित करने में भी सफल हैं। अमेठी और रायबरेली में उनके बड़ी संख्या में प्रशंसक हैं। अपने कठोर परिश्रम से उन्होंने उत्तर प्रदेश के कई निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस की छवि को निखारा। प्रियंका स्वाभाव से बहुत ही सहयोगी हैं और विवेक, जल्दी से घुल-मिल जाने की आदत और दृढ़ विश्वास के लिए देश की जनता उन्हें खूब पसंद करती है। संक्षेप में वो एक मज़बूत इरादों, निडर स्वभाव, बेहतरीन हाज़िर जवाब और आत्मविश्वास से भरी महिला हैं। देश के सबसे बड़े राजनीतिक घराने में जन्‍मीं प्रियंका कड़ी सुरक्षा में पली-बढ़ी। बावजूद इसके जब कभी वो सुरक्षा घेरा तोड़ कर जनता के बीच पहुंच जाती हैं तो जनता खुद को उनके क़रीब जाने से रोक ही नहीं पाती है। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि अगर वो पार्टी का बड़ा चेहरा बनकर चुनाव में खड़ी होती हैं तो अपनी दादी की तरह ही वो भी कमाल कर सकती हैं। हालात कैसे भी हों विपक्ष पर कटाक्ष करने में प्रियंका कभी चूकती नहीं हैं।

3. वसुन्धरा राजे सिंधिया (BJP) – ग्वालियर राजघराने की पुत्री वसुंधरा राजे का जन्म मुंबई में हुआ था। वसुंधरा राजे के माता-पिता अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से गिने जाते थे, जिन्होंने भारतीय सार्वजनिक जीवन के लिए अमूल्य योगदान दिया। राजे को बचपन से ही घुड़सवारी, बागवानी, संगीत और फोटोग्राफी का शौक था। लेकिन जनता उन्हें एक नेता के तौर पर जानती है।

उनकी माता, राजमाता विजयाराजे सिंधिया आजादी के पश्चात् एक महान नेता के रूप में उभरी, जिन्हें उनकी सादगी, उच्च विचारधारा और वैचारिक प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता था, वह गरीब से गरीब जनता के प्रति बेहद समर्पित थी। वसुंधरा राजे एक ऐसे माहौल में पैदा हुई थीं, जहां सेवा, देशभक्ति और राष्ट्र के प्रति समर्पण ही सबसे महत्वपूर्ण था। शायद ये भी एक वजह है कि देश की जनता वसुंधरा राजे को खुद के क़रीब मानती है। जनता से उनका जुड़ाव ही था जो 2003 में उन्हें अपनी मेहनत के बल पर राजस्थान की प्रथम महिला मुख्यमंत्री के बतौर कार्य करने का गौरव मिला।

4. मायावती (बहुजन समाज पार्टी (बसपा) – मायावती एक भारतीय महिला राजनीतिज्ञ हैं और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। उन्हें भारत की सबसे युवा महिला मुख्यमंत्री के साथ-साथ सबसे प्रथम दलित मुख्यमंत्री होने का भी श्रेय प्राप्त है। वे चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और उन्होंने सत्ता के साथ-साथ आने वाली कठिनाइयों का सामना भी किया है। मायावती का जन्म दिल्ली में एक दलित परिवार के घर पर हुआ। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक स्कूल शिक्षिका के रूप में की थी लेकिन कांशी राम की विचारधारा और कर्मठता से प्रभावित होकर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। वे अविवाहित हैं और अपने समर्थकों में ‘बहनजी’ के नाम से जानी जाती हैं।

मायावती सफल राजनेत्री के रूप में अपनी एक ख़ास पहचान बना चुकी हैं। उन्होंने अपनी मजबूत छवि का निर्माण अपनी योग्यता और खुद की विशेषताओं के बल पर किया है। वे एक आत्म-निर्भर महिला हैं। उनके व्यक्तित्व में आत्म-विश्वास और दृढ़ता कूट-कूट कर भरी है। जो उनके भाषणों में सुनाई भी देता है। काम के प्रति बेहद सजग रहने वाली मायावती अपने अफ़सरों की लापरवाही के लिए सख्त भी बन जाती हैं। उनकी यही आदत जनता को बेहद पसंद आती है।

सन 1985 और 1987 में भी उन्होंने लोक सभा चुनाव में कड़ी मेहनत की। आख़िरकार सन 1989 में उनके दल ‘बहुजन समाज पार्टी’ ने 13 सीटों पर चुनाव जीता। धीरे-धीरे पार्टी की पैठ दलितों और पिछड़े वर्ग में बढ़ती गई और सन 1995 में वे उत्तर प्रदेश की गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री बनाई गई।

अपनी भाषा शैली के दम पर ही उन्होंने दलितों के दिल में अपनी खुद की जगह बनाई है और दलितों में अपने प्रति विश्वास कायम किया है।

5. स्मृति ईरानी (BJP) – पंजाबी-बंगाली पृष्ठभूमि से संबंध रखने वाली स्मृति ईरानी का जन्म दिल्ली में हुआ। इनका पूरा नाम स्मृति ज़ुबिन ईरानी है। टेलीवीजन सीरियल से अपने करियर की शुरुआत करने वाली स्मृति ने एकता कपूर के सास बहू सीरियल ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ में प्रमुख रोल निभाकर शोहरत हासिल की और आज वो एक नेता बनकर जनता के लिए काम कर रही हैं।

दिल्‍ली की बंगाली-पंजाबी परिवार की लाड़ली स्‍मृति को भले ही आप सब लोग टीवी की चहेती बहू, मॉडल और एक नेता के तौर पर जानते हों लेकिन कभी अपने परिवार को मदद करने के लिए उन्‍हें भूखे सोने को मजबूर होना पड़ता था।
स्मृति ईरानी वर्ष 2003 में भाजपा में शामिल हुईं थी। शायद ही आप जानते हों कि स्‍मृति को हिन्‍दी, अंग्रेजी, गुजराती, बंगाली और मराठी भाषाएं आती हैं। वह रैलियों और चुनाव प्रचार के समय लोगों को कई भाषाओं में संबोधित करने के लिए मशहूर हैं। यही एक वजह है कि अलग अलग जाति धर्म के लोग उन्हें एक नेता के रूप में पसंद करते हैं।

6. अनुप्रिया सिंह पटेल (Apna Dal (soneylal) – अनुप्रिया पटेल उत्तर प्रदेश राज्य की एक भारतीय राजनेता और सोलहवीं लोकसभा में सांसद हैं। 2014 के चुनावों में इन्होंने उत्तर प्रदेश की मिर्जापुर सीट से अपना दल की ओर से भाग लिया।

अनुप्रिया पटेल सोन लाल पटेल की बेटी हैं। इनका जन्म कानपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ। अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार की सबसे युवा मंत्री हैं तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री के रूप में कार्यरत है और अपना दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वह पहले वाराणसी में उत्तर प्रदेश विधानमंडल के रोहनिया निर्वाचन क्षेत्र के लिए विधान सभा के सदस्य के रूप में चुनी गई थीं, जहां उन्होंने 2012 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में पीस पार्टी ऑफ इंडिया और बुंदेलखंड कांग्रेस के साथ गठबंधन में एक अभियान लड़ा था। सादा जीवन और उच्च विचार की प्रेरणा ने ही अनुप्रिया को जनता के बीच लोकप्रिय बनाया। कम बोलने वाली अनुप्रिया जब बोलती हैं तो अच्छे अच्छों की बोलती बंद कर देती हैं।

7. वृंदा करात (Communist Party Of India (marxist) – वृंदा करात भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की वरिष्‍ठ नेता हैं। उन्हें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की सदस्य के तौर पर 11 अप्रैल 2005 को पश्चिम बंगाल से राज्यसभा के लिए चुना गया। वृंदा पार्टी की पोलित ब्यूरो में शामिल होने वाली पहली महिला हैं। बता दें कि पोलित ब्यूरो सीपीआईएम की निर्णय लेने वाली सर्वोच्‍च संस्था है। वे 1971 में सीपीआई में शामिल हुईं और तब से देश में महिला सशक्तीकरण के मुद्दों पर काम करती आ रही हैं। वे 2005 में राज्यसभा की सदस्य बनीं। उनका जन्म कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता सूरज लाल दास लाहौर के रहने वाले थे।

वृंदा करात 2005 में माकपा पोलित ब्यूरो की पहली महिला सदस्य के तौर पर चुनी गईं। वह भारत की जनवादी महिला समिति(एडवा) की 1993 से 2004 तक महासचिव भी रह चुकी हैं और इसके बाद से एडवा के उपाध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं। देश की जनता उन्हें एक राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहचानती है।

उन्होंने लंदन में एयर इंडिया में नौकरी के दौरान लड़कियों को स्‍कर्ट पहनने की अनिवार्यता का विरोध किया। उन्‍होंने कहा कि महिलाओं को इस बात की छूट होनी चाहिए कि वो स्‍कर्ट पहनें या साड़ी। एयर इंडिया के मुख्‍यालय ने अंतत: उनकी बात मान ली और इस अनिवार्यता को समाप्त कर दिया। देश की जनता वृंदा को अपनी बात स्पष्ट तौर पर बोले जाने के लिए ही पसंद करती है। महिलाओं से जुड़ा कोई मुद्दा हो या किसी के ऊपर कोई ज़ुल्म हुआ हो आप वृंदा को खुद के साथ खड़ा पाएंगे।

8. मीसा भारती – (Rashtriya Janata Dal(RJD) – मीसा भारती, भारत के बिहार राज्य की एक राजनीतिज्ञ हैं साथ ही लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की बेटी हैं। या ये कह लीजिए कि मीसा भारती एक चिकित्सक और बिहार राज्य से एक सांसद और राज्यसभा सांसद हैं।

2014 में एक चिकित्सक से राजनीतिज्ञ बनी मीसा भारती ने पाटलिपुत्र की लोकसभा सीट के लिए असफल रूप से चुनाव लड़ा था और वे राजद के बागी राम कृपाल यादव से हार गई थीं। बिहार की जनता मीसा भारती को उनके पिता की ही तरह सादगी से बोलने और उनके कामों के लिए पहचानती है। मीसा को बिहार के ग्रामीण इलाकों में लैंगिक समानता के लिए, महिला सशक्तीकरण, बालिका शिक्षा, महिलाओं के खिलाफ अपराध, राजनीति में महिलाओं की भागीदारी और नीतिगत मामलों जैसे कामों के लिए जाना जाता है।

मीसा भारती को बेबाक अंदाज़ में बयान देने और तमाम मुद्दों पर खुलकर बोलने के लिए भी जाना जाता है। मीसा अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर काफी एक्टिव रहती हैं।

9. महबूबा मुफ़्ती (Jammu and Kashmir People’s Democratic Party) – जम्मू-कश्मीर में पीडीपी की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए नामित की गईं महबूबा मुफ्ती वह शख्सियत हैं जो राज्य की राजनीति में बड़ा कद रखने वाले पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की छाया से मजबूती से बाहर आ रही हैं और पार्टी को फिर से महत्वपूर्ण क्षेत्रीय ताकत बनाने के लिए प्रयासरत हैं।

महबूबा मुफ़्ती का जन्म बिजबेहारा (जम्मू और कश्मीर, भारत) में हुआ। उन्होंने अपने पिता के साथ राजनीति की शुरुआत तब की थी जब राज्य में आतंकवाद चरम पर था। इन पिता-पुत्री की जोड़ी ने वर्ष 1999 में अपनी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किया। बता दें कि 4 अप्रैल 2016 को, मुफ्ती ने शपथ ली और जम्मू-कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। भाजपा द्वारा कश्मीर में गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद, उन्होंने 19 जून, 2018 को इस्तीफा दे दिया।

महबूबा को पीडीपी के विकास और उसे ज़मीनी स्तर पर लोगों से जोडऩे का श्रेय दिया जाता है। कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि पार्टी को जमीनी स्तर से जोडऩे के काम में वह अपने पिता से भी आगे हैं। बता दें कि महबूबा आंतकवादी हिंसा के पीड़ितों के घर अक्सर जाया करतीं थीं और जल्द ही उनके परिजनों विशेषकर महिलाओं के साथ एक अनोखा संबंध स्थापित कर लेती थीं। महबूबा की इसी खूबी और लोगों की तकलीफ को अपना समझने की आदत ही जनता को बेहद पसंद आती है।

10. डिंपल यादव (Samajwadi Party) – डिंपल यादव को लोग यादव घराने की बहू और अखिलेश यादव की पत्नी के तौर पर ही जानते हैं। लेकिन अखिलेश की पत्नी होने के अलावा डिंपल की और भी पहचान हैं। भारतीय सेना के कर्नल सीएस रावत (रिटा.) की बेटी, मुलायम सिंह यादव की बड़ी बहू, एक बार निर्विरोध और लगातार दूसरी बार जीतने वाली कन्नौज की सांसद के तौर पर भी जनता उन्हें पहचानती है। इसके अलावा भी डिंपल परिवारवाद और पितृसत्ता वाली समाजवादी पार्टी में इतना लंबा सफर तय करने वाली एक महिला हैं।

शुरुआत में यूपी चुनाव में उन्होंने अपने पति, परिवार और पार्टी के लिए प्रचार किया। सपा की सोशल मीडिया कैंपेनिंग देखने का जिम्मा भी डिंपल पर था। ये डिंपल की मौजूदगी ही है, जिसने अखिलेश-डिंपल को ‘यूपी का पॉवर कपल’ बना दिया। आज सपा नेताओं को ये स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं कि अब अखिलेश के बाद जो भी हैं, डिंपल ही हैं।

2009 में मुलायम की नाराज़गी के बावजूद जब डिंपल को फर्रुखाबाद से चुनाव लड़ाया गया, तब वो बिल्कुल तैयार नहीं थीं। चुनाव तो हारीं ही, ये भी पता चल गया कि वो पॉलिटिक्स के लिए नहीं हैं। वो ढंग से भाषण नहीं दे पाती थीं, जनता से बात करने का अनुभव नहीं था, खुद की कोई पहचान नहीं थी। लेकिन वक़्त के साथ उनमे बहुत बदलाव आया।

डिंपल मंच से वही बातें बोलती हैं, जो अखिलेश अपनी रैलियों में कहते हैं, लेकिन अब लोग डिंपल को सुनते हैं। वो भाषण नहीं देती हैं, बातचीत करती हैं। कहती नहीं हैं, बताती हैं। योजनाओं के बारे में, मंशा के बारे में, अखिलेश के बारे में। ‘आपके अखिलेश भइया’ से शुरू होने वाली उनकी बात ‘सपा की सरकार’ पर खत्म होती है। सोशल मीडिया पर जो सपा दिखती है, वो डिंपल की ही सोची सपा है। अब वो फैसले लेने की पोजीशन में हैं।

अखिलेश खुद भी मानते हैं कि डिंपल की रैलियों में उनकी रैली से ज्यादा भीड़ आती है। ‘जहां मैं नहीं जा पाता हूं, वो चली जाती हैं। वो महिलाओं के मुद्दों पर बात करती हैं।’ सादगी से अपनी बात कहने वाली डिंपल को जनता उनके इसी अंदाज़ के लिए खूब पसंद करती है।

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