Hariyali Amavasya : एक ऐसा Mela जहां मिलती है सिर्फ ‘सहेलियों’ को ही एंट्री

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गांव में आज भी मेला(Mela) लगता है जिसका इंतज़ार सभी को रहता है। लेकिन क्या आपने कभी ऐसे किसी मेले के बारें में सुना है जहां सिर्फ महिलाओं को ही एंट्री मिलती हैं। राजस्थान के उदयपुर की ऐतिहासिक फतहसागर झील और सहेलियों की बाड़ी में (17 जुलाई) को Hariyali Amavasya के उपलक्ष्य में महिलाओं का Mela चल रहा है।

शहर की तमाम महिलाएं अपनी बेटियों, बहुओं, सहेलियों मेले का आंनद ले रही हैं। इसमें महिलाओं यानी सखियां और सहेलियों को ही एंट्री है। पुरुषों पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। राजस्थान में यह Mela महिला सशक्तीकरण का यह सबसे बेहतरीन उदाहरण है। फतहसागर झील व सहेलियों की बाड़ी मार्ग पर लगी मिठाइयों की दुकानों पर महिलाओं के झुंड रबड़ी और मालपुए का स्वाद चख रही हैं, वहीं पानी पुरी, कचौरी, समोसे, चाट आदि का भी मज़ा लिया जा रहा है।

अपनी सखियों के साथ आने वाली महिलाएं झूले, चकडोलर, चकरी में सवारी कर खूब मौज मस्ती कर रही हैं। रंगीन वेशभूषा में महिलाओं के मुंह में लगी पुपाड़ी के शोर ने मेले को परवान पर चढ़ा दिया है। गांव व शहर की महिलाएं इस दिन घर से ही भोजन तैयार कर लाती है और सहेलियों की बाड़ी में अपनी सखियों के साथ सामूहिक भोजन करती हैं। बीच में अगर कोई पुरुष दिख भी जाए तो उसकी शामत आ जाती है। महिलाएं उनसे सवाल करने लगती हैं और बाहर जाने के लिए मजबूर कर देती हैं। दुकानदारों, अधिकारियों को छूट है, फिर भी महिलाएं ही इस मेले की व्यवस्था करती हैं।

शहर का कोई भी शख्स ऐसा नहीं होगा, जिसने अपनी नानी, दादी, मौसी या बुआ के साथ इस मेले का आनंद नहीं उठाया होगा। आज भी यहां आने वाली महिलाएं अपने पुरखों को जरूर याद करती हैं, उस जगह पर जरूर जाती हैं, जहां वो अपनी नानी और दादी के साथ आई थीं। जहां उन्होंने अपनी मौसी और बुआ के साथ पहली बार झूले का आनंद लिया था। महिलाएं इस मेले का सालभर से इंतजार करती हैं। सावन का महीना शुरू होते ही मेले की तैयारी शुरू कर देती हैं।

जानें, मेले का इतिहास

मेवाड़ में करीब 124 साल पहले सावन के महीने में लगने वाला यह मेला उदयपुर के महाराणा फतेह सिंह की महारानी बख्तावर कंवर की देन है। यह परम्परा लगातार जारी है। उदयपुर मेले की शुरूआत तत्कालीन महाराणा फतेह सिंह के कार्यकाल के दौरान सन 1898 में हुई थी। दुनिया में पहली बार महाराणा फतेह सिंह ने मेले का अकेले महिलाओं को आनंद उठाने का अधिकार दिया था। इसके लिए राजा ने फतेहसागर झील जिसे पहले देवाली तालाब कहा जाता था, उस पर पाल बनवाई और वहां महिलाओं का मेला आयोजित किया। तब से लेकर आज तक यह परंपरा जारी है।

महाराणा फतेह सिंह के नाम पर ही देवाली तालाब का नाम फतेहसागर पड़ा, जो प्रसिद्ध झीलों में शुमार है। महाराणा फतेह सिंह रानी के साथ पहली बार लबालब हुए फतह सागर को देखने पहुंचे। उस समय महारानी ने महाराणा फतेह सिंह से महिलाओं के लिए मेला आयोजित किए जाने की मांग की थी, जिसे उन्होंने मान लिया था। राजा ने महारानी की अपील के बाद पूरे नगर में मुनादी करा दी और दो दिवसीय मेले की शुरूआत की। मेले का दूसरे दिन सिर्फ महिलाओं के लिए जाने किए का ऐलान कर दिया था।

मेवाड़ में महिलाओं को विशेष दर्जा दिया जाता रहा है। 18वीं शताब्दी में ही शाही महिलाओं के लिए सहेलियों की बाड़ी का तत्कालीन महाराणा संग्राम सिंह ने निर्माण कराया था। इस बाड़ी में उनकी रानी के विवाह के समय आई 48 सखियों के साथ प्रत्येक दिन प्राकृतिक माहौल में घूमने आती थीं।

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